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ना'त-ओ-मनक़बत
हज़ार शुक्र कि मैं हूँ ग़ुलाम तौंसा कामुझे दे पीर-ए-मुग़ाँ भर के जाम तौंसा का
हाफ़िज़ हबीब अ'ली शाह
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ग़ज़ल
ज़िंदगी थी इक हबाब और उस को क्या समझा था मैंहाँ हयात-ए-जावेदानी से सिवा समझा था मैं
बेताब काल्प्वी
कलाम
कभी लौट आएँ तो पूछना नहीं देखना उन्हें ग़ौर सेजिन्हें रास्ते में ख़बर हुई कि ये रास्ता कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
हम ग़म-ज़दों की मौत क्या और क्या हमारी ज़िंदगीबस हिज्र की शब मौत है और वस्ल के दिन ज़िंदगी
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
सरज़मीन-ए-चिश्त की आब-ओ-हवा कुछ और हैदीन-ओ-दुनिया से निराला और ही कुछ तौर है
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
वो सर और ग़ैर के दर पर झुके तौबा मआ'ज़-अल्लाहकि जिस सर की रसाई तेरे संग-ए-आस्ताँ तक है
बेदम शाह वारसी
बैत
फ़क़ीरी और दुनिया की मोहब्बत
फ़क़ीरी और दुनिया की मोहब्बतख़ुदा ऐसी फ़क़ीरी से बचाए
शाह अकबर दानापूरी
पद
दे दारू वहदत की साक़ी पीवें और पिलावें
दे दारू वहदत की साक़ी पीवें और पिलावैंगज़क प्रेम मिला कर इस में खाएँ और खिलावें
कवि दिलदार
शे'र
कहीं है अ’ब्द की धुन और कहीं शोर-ए-अनल-हक़ हैकहीं इख़्फ़ा-ए-मस्ती है कहीं इज़हार-ए-मस्ती है
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
किस तरह पुर-ज़ुल्म मुझ पर ज़ालिम-ओ-अज़्लम का होक्यूँ कि मैं भी बे-नवा हूँ ख़्वाजगान-ए-चिश्त का